चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए ख़ुदा हाफ़िज़ कहा बोसा लिया घर से निकल आए ये सच है हम को भी खोने पड़े कुछ ख़्वाब कुछ रिश्ते ख़ुशी इस की है लेकिन हल्क़ा-ए-शर से निकल आए अगर सब सोने वाले मर्द औरत पाक-तीनत थे तो इतने जानवर किस तरह बिस्तर से निकल आए दिखाई दे न दे लेकिन हक़ीक़त फिर हक़ीक़त है अंधेरे रौशनी बन कर समुंदर से निकल आए