चमन चमन न रहेगा जो तेरी बू न रहे मैं उस ख़याल से डरता हूँ जिस में तू न रहे जो तेरा अक्स भी मुझ को नसीब हो जाए मिरी तलाश मुकम्मल हो जुस्तुजू न रहे ये आरज़ू है कि तुझ सा तमाम दुनिया में सिवाए मेरे कोई और हू-ब-हू न रहे खुलेंगे दिल के दरीचे सुहाने मौसम में इस इंतिज़ार में ना-काम आरज़ू न रहे जो ज़िंदगी को ज़रा भी सुकून आ जाए तो रोज़-ओ-शब की मुसलसल ये हाव-हू न रहे ये बात मेरे यक़ीं के ख़िलाफ़ है 'तश्ना' किसी महाज़ पे तू और सुर्ख़-रू न रहे