वो लिखता है जब यादों के चाँद सितारे काग़ज़ पर ख़ुद ही उतर कर आ जाते हैं सारे नज़ारे काग़ज़ पर ऊपर नीचे आगे पीछे कोने किनारे काग़ज़ पर उस को लिखा है सर से पा तक मैं ने सारे काग़ज़ पर शायद इस पर सर रख कर वो लिखते लिखते सोया है उस के लब-ओ-रुख़्सार की ख़ुशबू जज़्ब है सारे काग़ज़ पर उस के ख़त के कोरे वरक़ पर ख़ून के आँसू बिखरें हैं जैसे कोई भूल से रख दे कुछ अंगारे काग़ज़ पर 'साजिद' अपने दिल के वरक़ पर नक़्श इसे कर लेना है अपनी ग़ज़ल में क्या रखा है कौन उतारे काग़ज़ पर