चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने चमन रहा न रहे वो चमन के अफ़्साने सुना नहीं हमें उजड़े चमन के अफ़्साने ये रंग हो तो सनक जाएँ क्यूँ न दीवाने छलक रहे हैं सुराही के साथ पैमाने बुला रहा है हरम, टोकते हैं बुत-ख़ाने खिसक भी जाएगी बोतल तो पकड़े जाएँगे रिंद जनाब-ए-शैख़ लगे आप क्यूँ क़सम खाने ख़िज़ाँ में अहल-ए-नशेमन का हाल तो देखा क़फ़स नसीब पे क्या गुज़री है ख़ुदा जाने हुजूम-ए-हश्र में अपने गुनाहगारों को तिरे सिवा कोई ऐसा नहीं जो पहचाने नक़ाब रुख़ से न सरकी थी कल तलक जिन की सभा में आज वो आए हैं नाचने-गाने किसी की मस्त-ख़िरामी से शैख़ नालाँ हैं क़दम क़दम पे बने जा रहे हैं मय-ख़ाने ये इंक़लाब नहीं है तो और क्या 'बिस्मिल' नज़र बदलने लगे अपने जाने-पहचाने