लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम बनते गए क़दम-ब-क़दम आइना से हम इस दर्जा पाएमाल न होते जफ़ा से हम लूटे गए सियासत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से हम बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम देखी गई न हम से शिकस्त-ए-ग़ुरूर-ए-हुस्न शरमा गए इरादा-ए-तर्क-ए-वफ़ा से हम ये क्या कहा जुनूँ है मोहब्बत की इंतिहा ऐ बे-ख़बर चले हैं इसी इंतिहा से हम माना कि दिल को तेरे न मिलने का ग़म रहा सद शुक्र बच गए तलब-ए-मा-सिवा से हम