चमन को मौसम-ए-गुल आ के ताज़गी देगा चराग़ की ये जिबिल्लत है रौशनी देगा बड़ी उमीद से मयख़ाने आए सहरा से किसे ख़बर थी कि साक़ी भी तिश्नगी देगा अब उन की बज़्म में जाए तो कोई क्यों जाए पता है ज़ुल्म का शैदाई बेबसी देगा ख़ुदा के घर में मगर सोच कर ये आए हैं ये एक सज्दा हमें लुत्फ़-ए-बंदगी देगा न रख उमीद कभी बज़्म-ए-इश्क़ चमकेगी कि हुस्न ख़ूगर-ए-ज़ुल्मत है तीरगी देगा जब उस ने मौत ही बाँटी है उम्र भर 'दानिश' तो कैसे मान लें वो हम को ज़िंदगी देगा