हुस्न वालों में सदा ख़ू-ए-जफ़ा पाई गई नाज़नीनों में मगर ख़ू-ए-अदा पाई गई हो गई चारागरी चारागरों की बे-असर हाँ फ़क़ीरों की ज़बानों पर दुआ पाई गई राह-ए-हक़ में जान जो हँस कर फ़िदा अपनी करें उन शहीदों ही में तो ख़ू-ए-वफ़ा पाई गई होती है हर एक दिल में यूँ तो जीने की तड़प नौजवानों में मगर ये ख़ू सिवा पाई गई हुस्न तेरा हो गया है बढ़ के हुस्न-ए-यूसुफ़ी आँखों में जब भी तिरी शर्म-ओ-हया पाई गई नेक कामों का सिला मिलता है उक़्बा में मगर नेक कामों की यहाँ भी तो जज़ा पाई गई इश्क़ वालों का हक़ीक़त में है इक अपना वक़ार हुस्न वालों में भी 'कुंदन' ख़ास अदा पाई गई