चमन में मुझ से दीवाने के ले जाने से क्या हासिल दिखा कर गुल जुनूँ को शोर में लाने से क्या हासिल जिन्हें बालों की फाँसी दी वो हरगिज़ जी नहीं सकते जो ज़ुल्फ़ों में फँसाया उस के ग़म खाने से क्या हासिल हमारे दर्द की दारू अगर कुछ है तो दारू है ये सब कुछ सुन के साक़ी बात पी जाने से क्या हासिल निगह तेरे ही जैसे अक्स आईने का चीनी में ये सब बातें समझ कर जान शरमाने से क्या हासिल न वो दिल है न वो शोर-ए-जुनूँ है सैर-ए-गुल मत कर रफ़ीक़ों बिन 'यक़ीं' गुलज़ार में जाने से क्या हासिल