तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना बस एहतियात सी इक रस्म-ओ-राह में रखना तुम अपने रंग नहाओ तुम अपनी मौज उड़ो मगर हमारी वफ़ा भी निगाह में रखना क़ुबूल गर न करे वो तो क्या हमें सर-ए-शाम गुलाब महफ़िल-ए-जिल्ल-ए-इलाह में रखना जो रास आई उसे मसनद-ए-शही तो सुनो शिकस्ता चूड़ियाँ अब रज़्म-गाह में रखना बड़ा अज़ाब है महमूदा-'ग़ाज़िया' हिजरत मिरे ख़ुदा मुझे अपनी पनाह में रखना