चमन में रह के भी क्यूँ दिल की वीरानी नहीं जाती बस इतनी बात पर लोगों की हैरानी नहीं जाती मुक़द्दर पर हुआ हूँ जब से मैं राज़ी उसी दिन से ख़ुशी हो या कि ग़म चेहरे की ताबानी नहीं जाती फ़रिश्ते भी हमारी क़िस्मतों पर नाज़ करते हैं मगर अपनी हक़ीक़त हम से पहचानी नहीं जाती अना का मसअला दीवानगी से कम नहीं होता हक़ीक़त कितनी भी वाज़ेह हो वो मानी नहीं जाती हक़ीक़त में वो आईना-सिफ़त इंसान होता है कि तौबा कर के भी जिस की पशेमानी नहीं जाती ये शिकवे और ये हीले-बहाने क्यूँ अबस कीजे जिन्हें बचना हो उन की पाक-दामानी नहीं जाती नज़र में फिर रहा है बस किसी के हुस्न का मंज़र मज़ाक़-ए-दीद की वो जल्वा-सामानी नहीं जाती मोहब्बत के लिए अब तो रिया-कारी ज़रूरी है यहाँ अहल-ए-जुनूँ की क़द्र पहचानी नहीं जाती क़यामत की निशानी ये नहीं तो और फिर क्या है लिबास अच्छे हैं लेकिन फिर भी उर्यानी नहीं जाती तअ'ल्लुक़ दूरियों से और भी मज़बूत होता है 'सहर' इंसाँ की लेकिन ख़ू-ए-नादानी नहीं जाती