ज़रा सा रंग ही भर दो मिरे दिल के फ़साने में भला क्या देर होगी तुम को मेरे पास आने में घुटन के बा'द जब दिल को ज़रा आराम मिलता है मज़ा आता है कितना गुनगुनाने मुस्कुराने में मुझे मा'लूम है हरजाई धोके-बाज़ है कितना कि ऐसे लोग भी होते ही हैं आख़िर ज़माने में छुपा लूँ राज़-ए-दिल कितना ही इक दिन खुल के रहता है तो फिर बे-कार है दुनिया से छुपने और छुपाने में 'मुनव्वर' को समझ न पाए क्यों जाने जहाँ वाले मिलेगा कब कोई मुझ जैसा सादा-दिल ज़माने में