चमन में थे जो चमन ही की दास्तान सुनते कोई नवा कोई नग़्मा कोई फ़ुग़ाँ सुनते क़दम न छोड़ते राहों को ता-बा-मंज़िल-ए-शौक़ हमारी बात जो ये अहल-ए-कारवाँ सुनते तिरे क़लम से तो गुलज़ार-ए-बे-नवा का क़फ़स तिरी ज़बाँ से भी कुछ हाल-ए-बे-ज़बाँ सुनते हमारे दर्द का तूफ़ाँ कहाँ कहाँ न उठा ये शोर आप जहाँ चाहते वहाँ सुनते इक उम्र अपनी भी गुज़री है ऐ चमन वालो गुलों के कुंज में अँदेशा-ए-ख़िज़ाँ सुनते किसी का रंज किसी का अलम किसी का मलाल अब और क्या था जो हम ज़ेर-ए-आसमाँ सुनते गुलों से बच के चले बुलबुलों से कतराए वो मेरा क़िस्सा-ए-ख़ूनीं कहाँ कहाँ सुनते कुछ इस में अपना भी सोज़-ए-बयाँ था ऐ 'जज़्बी' वगर्ना लोग कब अफ़साना-ए-जहाँ सुनते