चमन में वो फ़रामोशी का मौसम था मैं ख़ुद को भी ज़मीं पर बर्ग-ए-आवारा नज़र आया तो याद आया अभी इक निस्बत-ए-दार-ओ-रसन का क़र्ज़ बाक़ी है फ़राज़ जाह ओ मंसब से उतर आया तो याद आया भुलाया गर्दिश-ए-अय्याम ने दस्त-ए-पिदर यूँ तो मगर जब मोड़ कोई पुर-ख़तर आया तो याद आया किसी की आँख का तारा हुआ करते थे हम भी तो अचानक शाम का तारा नज़र आया तो याद आया भरा बाज़ार था कुछ जिंस-ए-जाँ के दाम लग जाते शहादत-गाह-ए-दुनिया से गुज़र आया तो याद आया