चमन सा दश्त ता-हद्द-ए-नज़र कितना हसीं है तू मेरा हम-क़दम है तो सफ़र कितना हसीं है मिरी जानिब लपकती मंज़िलों से पूछ लेना किसी के साथ चलने का हुनर कितना हसीं है वो मेरे सामने बैठा हुआ है मेरा हो कर दुआ-ए-नीम-शब का ये असर कितना हसीं है ज़हे क़िस्मत कि साये दार भी है बा समर भी मिरे सर पर मोहब्बत का शजर कितना हसीं है अजब ख़्वाब आश्ना आँखें हुई हैं वस्ल की शब खुली है आँख तो रंग-ए-सहर कितना हसीं है मैं हँसती खेलती हूँ जिस के ख़्वाब ना-रसा में मिरा एहसास हसरत है मगर कितना हसीं है नहीं है 'नाज़' कम जन्नत से मेरा आशियाना मोहब्बत से मुज़य्यन मेरा घर कितना हसीं है