चमन वही है घटाएँ वही बहार वही मगर गुलों में वो अब रंग-ओ-बू नहीं बाक़ी है दिल-कशी में वही अब भी मौसमों की बहार नज़र में कैफ़ियत-ए-रंग-ओ-बू नहीं बाक़ी शबाब-ए-दह्र की अब भी है वो फ़रावानी मगर ख़याल में जोश-ए-नुमू नहीं बाक़ी है दिल में दर्द भी पहलू में दिल भी है लेकिन किसी के दर्द पे रोने की ख़ू नहीं बाक़ी हरम की शम-ए-फ़रोज़ाँ है आज भी लेकिन तजस्सुस-ए-नज़र-ए-शोला-ए-जू नहीं बाक़ी गले तो मिलते हैं अहबाब ऐ 'हया' अब भी मगर दिलों में सदाक़त की बू नहीं बाक़ी