चमन वाला जो अंदाज़-ए-चमन का क़द्र-दाँ रहता न फूलों पर जफ़ा होती न ज़द में आशियाँ रहता बहारें मुस्कुरातीं मेहरबाँ गर बाग़बाँ रहता चमन की डाली डाली पर हमारा आशियाँ रहता उसूल-ए-मय-कशी सब सीख लेता जाम-ओ-मीना से जो वाइज़ भी शरीक-ए-हल्क़ा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रहता चमक उठता मुक़द्दर साथ देती ना-रसा क़िस्मत जो फ़िरदौस-ए-नज़र बन कर किसी का आस्ताँ रहता चलो अच्छा हुआ दिल ने हर इक सूरत मिटा डाली हुजूम-ए-शौक़ में कार-ए-जहाँ बार-ए-गराँ रहता बहल जाता है दिल वीरानी-ए-दश्त-ओ-बयाबाँ से न होते ये मनाज़िर तो तिरा वहशी कहाँ रहता मिरी रंगीं बयानी लुत्फ़ देती बज़्म-ए-साक़ी में जो रहते इक तरफ़ तुम इक तरफ़ पीर-ए-मुग़ाँ रहता वतन के टुकड़े टुकड़े करने वालों से कोई पूछे तबाही क्यों ये आती एक अगर हिन्दोस्ताँ रहता मोहब्बत मेरी रुस्वाई का बाइ'स बन गई 'असलम' बहुत अच्छा था इस से मैं जो बेनाम-ओ-निशाँ रहता