चमकती ओस की सूरत गुलों की आरज़ू होना किसी की सोच में रहना किसी की जुस्तुजू होना वो पत्थर है पिघलने में ज़रा सा वक़्त तो लेगा अभी मुमकिन नहीं है उस से कोई गुफ़्तुगू होना उसे में देखता जाऊँ कहाँ ये बात आँखों में नहीं आसान सूरज के मुसलसल रू-ब-रू होना उसे आता है लम्हों में भी अपने अक्स को भरना न होना पास लेकिन फिर भी मेरे चार सू होना तुम्हारी याद की बारिश बरसती है मिरे दिल पर मिरी आँखों को आता ही नहीं है बे-वज़ू होना लहू में बो गया है क़तरा क़तरा सैंकड़ों काँटे हरी रुत में भी मेरे सेहन-ए-गुल का बे-नुमू होना