हर एक पे ये राज़ भी इफ़्शा नहीं होता अच्छा जो नज़र आता है अच्छा नहीं होता रोते हो भला किस लिए जब जानते हो तुम ये इश्क़ है इस इश्क़ में क्या क्या नहीं होता उम्मीद रवा रखते हो हर एक से क्यूँकर हर शख़्स ज़माने में मसीहा नहीं होता करता है जो हर बात पे सच्चाई का दा'वा सच बात तो ये है कि वो सच्चा नहीं होता यादों के शबिस्तान में बैठा हुआ साइल तन्हा जो नज़र आता है तन्हा नहीं होता