चाँद आँगन में जब उतरता है ज़र्द पत्तों में रंग भरता है कौन रुकता है उम्र भर के लिए अक्स पानी में कब ठहरता है कोई कैसे कहीं पे रुक जाए वक़्त हर हाल में गुज़रता है हुस्न-ए-बे-ख़ुद को देखने के लिए आइना देर तक सँवरता है हुस्न-ए-बे-कल की रू-नुमाई तक कोई जीता है कोई मरता है अपने जैसों में मो'तबर हो कर आदमी आदमी से डरता है