चाँद की कगर रौशन शब के बाम-ओ-दर रौशन इक लकीर बिजली की और रहगुज़र रौशन उड़ते फिरते कुछ जुगनू रात इधर उधर रौशन रात कौन आया था कर गया सहर रौशन फूल क़ुमक़ुमों जैसे तितलियों के पर रौशन लड़कियों से गलियारी खिड़कियों से घर रौशन अपने-आप को या-रब अब तो हम पे कर रौशन मैं दरख़्त अंधा हूँ दे मुझे समर रौशन शेर मत सुना 'अल्वी' दाग़-ए-दिल न कर रौशन