चाँद को देख के जुगनू ने फ़रमाया है सुब्ह का भूला शाम को लौट के आया है वस्ल ने कम-उम्री में जान गँवाई और हिज्र हमारा अमृत पी कर आया है जो न हो पाया वो उस की मर्ज़ी है जो भी होता है वो उस की माया है दर्ज हुआ है बद-नामी के खाते में इश्क़ में हम ने जितना नाम कमाया है हैरत करते हैं बच्चे जब सुनते हैं एक रूपे में हम ने क्या क्या खाया है फिर मायूसी को इस में फँसाना होगा फिर से उम्मीदों ने जाल बिछाया है और कोई अब रंग नहीं चढ़ता मुझ पर उस ने ऐसा अपना रंग जमाया है लफ़्ज़ों ने जब हाथ कभी खींचा अपने ख़ामोशी ने अपना हाथ बढ़ाया है ख़ुशियों का लम्हा भी बच्चों जैसा है घुटनों घुटनों चल कर मुझ तक आया है कैसी कैसी बातें दिल में आईं हैं रात गए जब फ़ोन किसी का आया है