चाँद मशरिक़ से निकलता नहीं देखा मैं ने तुझ को देखा है तो तुझ सा नहीं देखा मैं ने हादिसा जो भी हो चुप-चाप गुज़र जाता है दिल से अच्छा कोई रस्ता नहीं देखा मैं ने फिर दरीचे से वो ख़ुश्बू नहीं पहुँची मुझ तक फिर वो मौसम कभी दिल का नहीं देखा मैं ने मोम का चाँद हथेली पे लिए फिरता हूँ शहर में धूप का मेला नहीं देखा मैं ने चढ़ते सूरज की शुआ'ओं ने मुझे पाला है जो उतर जाए वो दरिया नहीं देखा मैं ने फिर मिरे पाँव की ज़ंजीर हिला दे कोई कब से इस शहर का रस्ता नहीं देखा मैं ने मुझ को पानी में उतरने की सज़ा देता है वो समझता है कि दरिया नहीं देखा मैं ने 'क़ैस' कहते हैं फ़क़ीरों पे बहुत भौंकता है अपने हम-साए का कुत्ता नहीं देखा मैं ने