चाँद निकलेगा तो घर घर में उजाले होंगे चाँदनी रात में सब रौशनी वाले होंगे मंज़िल-ए-शौक़ पे चमकेंगे जो मोती की तरह वो मुसाफ़िर के थके पाँव के छाले होंगे होते लबरेज़ तो रह रह के छलकते कैसे दर-हक़ीक़त वो सभी ख़ाली पियाले होंगे ख़ून जिस वक़्त सियाही से भी सस्ता होगा ख़ून से छापे हुए ग़म के रिसाले होंगे आप के पीछे वही लोग पड़ेंगे इक दिन आप बरसों जिन्हें आग़ोश में पाले होंगे तुम जो नफ़रत की सियाही से लिखोगे तारीख़ उस के अल्फ़ाज़ भी सफ़्हात भी काले होंगे मस्लहत थी कि बरस पाए न काले बादल चर्ख़ ने फ़ैसले कुछ सोच के टाले होंगे झूट को झूट 'क़मर' कौन करेगा साबित हक़-परस्तों की ज़बानों पे जो ताले होंगे