निगाह-ए-बाग़बाँ क्या कह गई गुलहा-ए-ख़ंदाँ से कि उट्ठा कारवान-ए-रंग-ओ-बू सह्न-ए-गुलिस्ताँ से मदद ऐ दीदा-ए-बीना मदद ऐ ताब-ए-नज़्ज़ारा तजल्ली मुस्कुराती है नक़ाब-ए-रू-ए-जानाँ से नसीम-ए-सुब्ह के झोंकों से क्या खटका भला उस को मिरी शम-ए-तमन्ना वो है जो लड़ती है तूफ़ाँ से मआ'ज़-अल्लाह सहरा की शब-ए-तारीक-ओ-तूफ़ानी मुसाफ़िर ख़ुद न जल जाए चराग़-ए-ज़ेर-ए-दामाँ से लरज़ उठता हूँ बेदारी में यूँ तख़्ईल-ए-इशरत पर कि जैसे चौंक उठता हो कोई ख़्वाब-ए-परेशाँ से जुनूँ की तर्बियत कर 'अश्क' ये नंग-ए-मोहब्बत है किसी का राज़ रुस्वा हो तिरे चाक-ए-गरेबाँ से