चाँद पर है मुझे तेरा ही गुमाँ आज की रात सूझता ही नहीं कुछ सूद-ओ-ज़ियाँ आज की रात दर्द-ए-इंसान में इंसान मिटा जाता है इक नए अहद का मिलता है निशाँ आज की रात जामा-ए-हस्ती-ए-इंसाँ है ब-रंग-ए-मातम उठ रहा है शम-ए-सोज़ाँ से धुआँ आज की रात इक नए मोड़ पे है दर्द-ए-मोहब्बत अपना दारु-ए-दर्द है ख़ुद दर्द-ए-जहाँ आज की रात ऐ सितारों के ख़ुदावंद ये क्या आलम है चाँदनी में भी है तारीक जहाँ आज की रात क्या है मेराज यही दर्द की लज़्ज़त अपनी क्या इसी में हैं रुमूज़-ए-दो-जहाँ आज की रात दूर से आती हैं कानों में दिलों की आहें क्या इन्हीं में है ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ आज की रात जो भी मज़लूम है दिल उस के लिए रोता है मेरी हर साँस में है शोर-ए-फ़ुग़ाँ आज की रात