जाँ-ब-लब तिश्ना-दहन जाते रहे By Ghazal << कोई आज वज्ह-ए-जुनूँ चाहता... चाँद पर है मुझे तेरा ही ग... >> जाँ-ब-लब तिश्ना-दहन जाते रहे साक़ियान-ए-बज़्म-ए-जम आते रहे इक ग़म-ए-दुश्मन ही दुनिया में न था और भी ग़म थे जो तड़पाते रहे दर्द-ए-दिल बढ़ता गया है जिस क़दर चारा-जूई दोस्त फ़रमाते रहे ज़ौक़-ए-आज़ादी में जो थे जाँ-ब-लब ऐसे क़ैदी जान से जाते रहे Share on: