चाँद तारों में जी नहीं लगता ख़ुश नज़ारों में जी नहीं लगता दिल बुझा है कुछ इस तरह मेरा अब बहारों में जी नहीं लगता नाख़ुदा मुझ को डूब जाने दे अब किनारों में जी नहीं लगता मुतरिबा छेड़ अब न साज़-ए-तरब नग़्मा-ज़ारों में जी नहीं लगता दिल बहलता है दिल-निगारों में ग़म-गुसारों में जी नहीं लगता ये हसीं शाम ये हसीन सहर कोहसारों में जी नहीं लगता क्या करूँ सैर-ए-आबशार 'अख़्तर' आबशारों में जी नहीं लगता