गर्दिश-ए-वक़्त ने मारा मुझ को कौन अब देगा सहारा मुझ को मेरी कश्ती है हवादिस का शिकार अब सदा दे न किनारा मुझ को राह दुश्वार रौशनी मादूम है सफ़र फिर भी गवारा मुझ को मैं हूँ अफ़्सुर्दा रात है काली क्यों है जीने का इशारा मुझ को राह दुश्वार है मगर 'अनवर' है रिफ़ाक़त का सहारा मुझ को