चाँदनी में साया-हा-ए-काख़-ओ-कू में घूमिए फिर किसी को चाहने की आरज़ू में घूमिए शायद इक भूली तमन्ना मिटते मिटते जी उठे और भी इस जल्वा-ज़ार-ए-रंग-ओ-बू में घुमिए रूह के दरबस्ता सन्नाटों को ले कर अपने साथ हमहमाती महफ़िलों की हाव-हू में घुमिए क्या ख़बर किस मोड़ पर महजूर यादें आ मिलें घूमती राहों पे गर्द-ए-आरज़ू में घुमिए ज़िंदगी की राहतें मिलती नहीं मिलती नहीं ज़िंदगी का ज़हर पी कर जुस्तुजू में घुमिए कुंज-ए-दौराँ को नए इक ज़ाविए से देखिए जिन ख़लाओं में निराले चाँद घूमें घुमिए