बे-रुख़ी ही बे-रुख़ी है हर तरफ़ बिखरी बिखरी ज़िंदगी है हर तरफ़ दुश्मनी ही दुश्मनी है हर तरफ़ आग नफ़रत की लगी है हर तरफ़ किस ने ये जीना अजीरन कर दिया ख़ौफ़ दहशत सनसनी है हर तरफ़ कोई शय भी अब नहीं है मशरिक़ी रंग सब का मग़रिबी है हर तरफ़ बात जो दिल में है कह सकते नहीं कैसी अपनी बेबसी है हर तरफ़ आदमी में आदमियत तक नहीं बात अच्छी कौन सी है हर तरफ़ जिस में 'रोबीना' नहीं है फ़िक्र-ओ-फ़न क्या कहें क्या शाइ'री है हर तरफ़