चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर जिस्म है या कोई शमशीर निकल आई है मुद्दतों बा'द उठाए थे पुराने काग़ज़ साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है कहकशाँ देख के अक्सर ये ख़याल आता है तेरी पाज़ेब से ज़ंजीर निकल आई है सेहन-ए-गुलशन में महकते हुए फूलों की क़तार तेरे ख़त से कोई तहरीर निकल आई है चाँद का रूप तो राँझे की नज़र माँगे है रेन-डोली से कोई हीर निकल आई है