इश्क़ की बर्बादियों का इक यही हासिल सही तू नहीं अपना तो तेरा ग़म शरीक-ए-दिल सही ज़िंदगी को ज़िंदगी की कुछ ख़ुशी हासिल सही दर्द-ए-महरूमी सही या सोज़-ए-दर्द-ए-दिल सही तू अगर मुमकिन नहीं तो ग़म भी तेरा कम नहीं एक शय हासिल सही और एक बे-हासिल सही सामने उन के मगर फिर भी निकल आते हैं अश्क कितने ही पर्दों में पिन्हाँ राज़-ए-सोज़-ए-दिल सही ख़ैर हो यारब मिरे अज़्म-ओ-यक़ीं की ख़ैर हो लाख एहसास-ए-फ़रेब-ए-दूरी-ए-मंज़िल सही जुस्तुजू ने दोस्त आख़िर जुस्तजू-ए-दोस्त है रहरव-ए-राह-ए-तलब गुम-कर्दा-ए-मंज़िल सही उस की एक इक आन पर 'साबिर' के जान-ओ-दिल निसार इस्तिलाह-ए-आम में मशहूर वो क़ातिल सही