चराग़ जलने लगें और दिल मचलने लगे उधर हो रात उधर कोई जी को मलने लगे उदास ओस की बूंदों से बुझने-जलने लगे तुम आ रहो तो सितारों की लौ सँभलने लगे ये देवदार की टहनी पे थम गया सा चाँद हवा चले तो अभी करवटें बदलने लगे तमाम-रात धुआँ सा उछालती रही रात रुकी तो ठिठुरे हुए हाथ-पाँव जलने लगे अब इन हरी-भरी सड़कों का जाने क्या होगा थी जिन से राह वही रास्ता बदलने लगे जो बादलों में तिरी माँग सी लकीरों पर नज़र गई तो दिलों में चराग़ जलने लगे रुको तो दर्द सा ठहरा सुझाई दे दिल में चलो तो 'अश्क' कसक साथ साथ चलने लगे