चराग़ ताक़-ए-तिलिस्मात में दिखाई दिया फिर इस के ब'अद मेरे हाथ में दिखाई दिया मैं ख़ुश हूँ कमरे में पहली दराड़ आने से चलो मैं अपने मज़ाफ़ात में दिखाई दिया कई चराग़ बना लूँगा तोड़ कर सूरज अगर कभी ये मुझे रात में दिखाई दिया हज़ार आँखों ने घेरे में ले लिया मुझ को मैं एक शख़्स के ख़दशात में दिखाई दिया इक और इश्क़ मुझे कह रहा था आ 'अहमद' इक और हिज्र मिरी घात में दिखाई दिया