चराग़-ए-अंजुमन को ये ख़बर क्या कि मंज़िल क्या है और रस्म-ए-सफ़र क्या सफ़र में फ़िक्र-ए-राहत इस क़दर क्या सजाए हैं ये तुम ने बाम-ओ-दर क्या नहीं गर्दिश में अब शम्स-ओ-क़मर क्या न बदलेंगे मिरे शाम-ओ-सहर क्या ख़ुलूस-ए-इज्ज़ है इक शर्त-ए-सज्दा किसी का नक़्श-ए-पा क्या संग-ए-दर क्या मशिय्यत कार-फ़रमा-ए-दो-आलम तो फिर ये नेक बद क्या ख़ैर-ओ-शर क्या बढ़ी है वक़्त की रफ़्तार कैसी हुई है ज़िंदगानी मुख़्तसर क्या अदा-ए-शुक्र भी लाज़िम है 'अतहर' रहेगा शिकवा-बर-लब उम्र भर क्या