चराग़-ए-फ़िक्र जलाया है रात भर हम ने और उस के बा'द निखारा रुख़-ए-सहर हम ने हमें शुऊ'र ने धोके दिए हैं रह रह कर फ़रेब खाए हैं दानिस्ता बेशतर हम ने सिला ख़िरद का ज़माने में जाम-ए-ज़हर सही निखार दी है मगर अज़्मत-ए-बशर हम ने नज़र हो दौलत-ए-हर-दो-जहाँ पे क्या माइल समेट ली है बहुत दौलत-ए-नज़र हम ने सदा-ए-पा की सुनी बाज़-गश्त ही हर गाम तलाश की है जहाँ तेरी रहगुज़र हम ने निगार-ए-गुल ने लिया नाम ज़ेर-ए-लब तेरा उदास चाँद को देखा पस-ए-शजर हम ने