डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से वो आई बाम पे क्या धूप के बहाने से वो क़िस्सा-गो तो बहुत जल्द-बाज़ आदमी था बहुत सी लकड़ियाँ हम रह गए जलाने से नज़र तो डाल रवानी की इस्तक़ामत पर ये आबशार है कोहसार के घराने से मुसाफ़िरान-ए-मोहब्बत मुझे मुआ'फ़ करें मैं बाज़ आया उन्हें रास्ता दिखाने से अगर मैं आख़िरी बाज़ी न खेलता 'अज़हर' तो ख़ाली हाथ न आता क़िमार-ख़ाने से