चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ ये क़ैदी भी किसी के नाम पर आज़ाद कर दूँ बहुत हम से गुरेज़ाँ ये ज़मीन ओ आसमाँ हैं इजाज़त हो तो इक दुनिया नई आबाद कर दूँ जिधर निकलूँ सवाद-ए-हिज्र ही का सामना है कोई सूरत यहाँ भी वस्ल की ईजाद कर दूँ मिरे मायूस रहने पर अगर वो शादमाँ है तो क्यूँ ख़ुद को मैं उस के वास्ते बर्बाद कर दूँ बहुत चेहरे निगाहों में उभरते डूबते हैं अगर कुछ देर को रौशन चराग़-ए-याद कर दूँ बहुत दिन से मुसिर इस बात पर वो मेहरबाँ है कि मैं दिल को रहीन-ए-सोहबत-ए-नाशाद कर दूँ