चराग़-ए-नूर थामे दश्त से जुगनू निकल आए पलट कर देख लें शायद कोई पहलू निकल आए तुम्हारे हिज्र में पथरा गई है आँख सावन की मिलो हम से कि यूँ शायद कोई आँसू निकल आए हमा-तन रक़्स रहता हूँ यही मैं सोच के शायद तमन्ना-सोज़ सहरा से कोई आहू निकल आए ये कू-ए-यार है कोई करिश्मा हो भी सकता है अगर इस हब्स में उस सम्त से ख़ुशबू निकल आए जकड़ रखा है पूरे ज़ोर से किस ने शिकंजे में मुझे लगता है तेरी याद के बाज़ू निकल आए अनाएँ तर्क करने का 'सफ़ी' बस एक रस्ता है इधर से मैं अगर निकलूँ उधर से तू निकल आए