चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अँधेरा है अभी तो सुब्ह के माथे का रंग काला है अभी फ़रेब न खाओ बड़ा अँधेरा है वो जिन के होते हैं ख़ुर्शीद आस्तीनों में उन्हें कहीं से बुलाओ बड़ा अँधेरा है मुझे तुम्हारी निगाहों पे ए'तिमाद नहीं मिरे क़रीब न आओ बड़ा अँधेरा है फ़राज़-ए-अर्श से टूटा हुआ कोई तारा कहीं से ढूँड के लाओ बड़ा अँधेरा है बसीरतों पे उजालों का ख़ौफ़ तारी है मुझे यक़ीन दिलाओ बड़ा अँधेरा है जिसे ज़बान-ए-ख़िरद में शराब कहते हैं वो रौशनी सी पिलाओ बड़ा अँधेरा है ब-नाम-ए-ज़ोहरा-जबीनान-ए-ख़ित्ता-ए-फ़िर्दौस किसी किरन को जगाओ बड़ा अँधेरा है