चराग़ मेहमाँ हैं रात भर के मकाँ मुनव्वर नहीं रहेगा इसे बसा लो दिल-ओ-नज़र में कि फिर ये मंज़र नहीं रहेगा ज़ख़ीरा-ए-आब पर है दार-ओ-मदार बारिश के मौसमों का कहाँ से आएँगे अब्र घिर कर अगर समुंदर नहीं रहेगा हुआ है उस से मिरा तसादुम तो क्यों उसे ना-तमाम छोड़ूँ फ़सील रस्ते की टूट जाएगी या मिरा सर नहीं रहेगा रही जो तहसील-ए-आब-ओ-दाना की शर्त ख़ाना-ब-दोश होना किसी परिंदे का आशियाना चमन के अंदर नहीं रहेगा किसी का दीवार पर तसर्रुफ़ कोई हुआ बाम-ओ-दर पे क़ाबिज़ यही मकीनों की ख़ू रही तो यक़ीन है घर नहीं रहेगा इसी से क़ाएम है शान उस की यही है 'गुलज़ार' आन उस की रहेगी क्या आबरू सदफ़ की जो उस में गौहर नहीं रहेगा