चराग़ों की हिमायत कर रहा हूँ मैं सूरज से बग़ावत कर रहा हूँ मिरी आँखें मुनव्वर हो रही हैं तिरी जब से ज़ियारत कर रहा हूँ क़यामत-ख़ेज़ हैं हालात लेकिन मैं जीने की जसारत कर रहा हूँ मिरी इज़्ज़त ज़माना कर रहा है बुज़ुर्गों की मैं इज़्ज़त कर रहा हूँ मुसलसल अपना ख़ून-ए-दिल जला कर ग़ज़ल मैं तेरी ख़िदमत कर रहा हूँ