चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में मुस्तक़िल अपना ठिकाना है इसी मिट्टी में जिन के दामन पे कभी चांद-सितारे चमके दफ़न उन का भी फ़साना है इसी मिट्टी में बे-अमल हाथ लगाए भी तो ख़ाली जाए हाँ जफ़ा-कश का ख़ज़ाना है इसी मिट्टी में इस तरह चल कि ये पामाल न होने पाए बे-ख़बर आब है दाना है इसी मिट्टी में हम-वतन ख़ाक-ए-वतन क्यूँ न हो प्यारी कि हमें बा'द-अज़-मर्ग भी जाना है इसी मिट्टी में लोग कल कह के तुझे याद करेंगे 'अख़लाक़' शाइ'र-ए-फ़ख़्र-ए-ज़माना है इसी मिट्टी में