फ़लक से चाँद चमन से गुलाब ले आए कहाँ से कोई तुम्हारा जवाब ले आए हज़ार रंग हैं हुस्न-ओ-जमाल के लेकिन वो रंग और है जिस को शबाब ले आए अजीब तुर्फ़ा-तमाशा है ज़िंदगी मेरी ख़ुशी भी आए तो ग़म बे-हिसाब ले आए तिरे ख़मीर में शामिल है गुमरही वर्ना फ़लक से कितने पयम्बर किताब ले आए इधर वो तिश्ना-लबी है कि जाँ-ब-लब हैं हम उधर वो दस्त-ए-करम पर सराब ले आए उसी की आज भी रहती हैं मुंतज़िर आँखें जो आ भी जाए तो सद इज़्तिराब ले आए ये शेर-गोई है 'अख़लाक़' कोई खेल नहीं करे वो मश्क़ जो छलनी में आब ले आए