चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है गर्दिश-ए-दहर यहाँ जुम्बिश-ए-गहवारा है चाँद तारों के तलातुम से ये आता है ख़याल दिल-ए-वहशी कोई तूफ़ाँ-ज़दा सय्यारा है बह गए दीदा-ए-नम-नाक से दरिया लेकिन दिल वही एक दहकता हुआ अँगारा है दिल हुआ सोज़-ए-जहन्नम में गिरफ़्तार मगर रूह अब भी किसी फ़िरदौस में आवारा है कैसी तक़दीर की गर्दिश ग़म-ए-दिल को मैं ने गर्दिश-ए-गुम्बद-ए-अफ़्लाक पे दे मारा है मेरे शेरों से तार्रुज़ न कर ऐ नाक़िद-ए-फ़न मेरी बर्बादी-ए-दिल ही मिरा शह-पारा है बहजत-ए-फ़िक्र पे क़ादिर हूँ मैं जब तक 'अख़्तर' मुझे सरमाया-ए-अंदोह बहुत प्यारा है