बहार-ए-फ़िक्र के जल्वे लुटा दिए हम ने जुनून-ए-इश्क़ के दरिया बहा दिए हम ने फ़रोग़-ए-दानिश-ओ-बुरहाँ के शोले भड़का कर तवहहुमात के ख़िर्मन जला दिए हम ने गिरा के दर्क-ओ-बसीरत की बिजलियाँ पैहम तअ'स्सुबात के टुकड़े उड़ा लिए हम ने बना के फ़िक्र-ओ-तदब्बुर को ख़ादिम-ए-इंसाँ मुक़द्दरात के छक्के छुड़ा दिए हम ने शुऊ'र-ए-नक़्द की सेहत-पसंदियों की क़सम अक़ीदतों के परख़चे उड़ा दिए हम ने मिटा के तफ़रक़ा-ए-ख़ास-ओ-आम की ला'नत हुक़ूक़-ए-ख़ास ठिकाने लगा दिए हम ने फ़तादगान-ए-ज़मीं का बुलंद कर के अलम फ़लक-नशीनों के परचम झुका दिए हम ने नए शुऊ'र से ज़ेहनों में बिजलियाँ भर दीं नई उमंगों से दिल जगमगा दिए हम ने गुमाँ हयात पे होता है गीत की लय का कुछ ऐसे गीत जहाँ को सुना दिए हम ने तिलिस्म तोड़ के झूटी हक़ीक़तों के तमाम अजाइबात के जादू जगा दिए हम ने वरा-ए-चर्ख़ थे आबाद जिस क़दर फ़िरदौस ज़मीं की सत्ह पे ला कर बसा दिए हम ने बना के मेहनत-ए-इंसाँ को एक क़द्र-ए-बुलंद ज़मीं पे चाँद सितारे बिछा दिए हम ने जला के अज़्मत-ए-आदम की शम-ए-देरीना चराग़ दैर-ओ-हरम के बुझा दिए हम ने जो दर्क रखते हैं अख़्तर वो समझें और बताएँ ये किस शराब के साग़र लुंढा दिए हम ने