चार-सू सैल-ए-सिपाह-ए-मह-ओ-अख़्तर तेरा सरहद-ए-शब से गुज़रता हुआ लश्कर तेरा बे-कराँ तू ही महाकात-ए-शब-ओ-रोज़ में है दश्त-ए-ज़ुल्मत तिरा रहवार-ए-मुनव्वर तेरा कुर्रा-ए-बाद पे सद-रंग मनाज़िर तेरे हल्का-ए-अर्ज़ में यक-नक़्श समुंदर तेरा हर्फ़-ए-क़िर्तास जिहत-गीर है तफ़्सीर तिरी अक्स-ए-आईना-ए-औरंग है जौहर तेरा दाम-ए-गिर्दाब में बिफरी हुई मौजें तेरी तह में पानी की गिराँ-माया-ए-गौहर तेरा