चश्म-ए-मुश्ताक़-ए-मुलाक़ात कहाँ थी पहले दिल में तुग़्यानी-ए-जज़्बात कहाँ थी पहले बाद नाकामी-ए-बिसयार हुई है हासिल जज़्ब-ए-दिल में ये करामात कहाँ थी पहले हेच है जिस की निगाहों में मताअ'-ए-तस्कीं दिल-ए-बेताब में ये बात कहाँ थी पहले शौक़-ए-सादिक़ की बदौलत ये हुई है ऐ दोस्त दर्द से दिल की मुलाक़ात कहाँ थी पहले जिस को देखो नज़र आता है गिरफ़्तार-ए-अलम इस क़दर कसरत-ए-आफ़ात कहाँ थी पहले अब तो बिन-देखे तिरे जीना हुआ है दूभर तेरे दीवाने में ये बात कहाँ थी पहले रोज़ गिरता ही चला जाता है अख़्लाक़-ए-जहाँ 'सूफ़ी' ये सूरत-ए-हालात कहाँ थी पहले