तुम्हारी बे-नियाज़ी तो हमारी बेबसी लाज़िम अगर तुम ही नहीं सुनते तो अपनी ख़ामुशी लाज़िम ज़बान-ए-हाल क्या बोले सरिश्क-ए-ज़ख़्म क्या टपके यहाँ ख़ामोशियों पर भी है अक्सर ख़ामुशी लाज़िम मनाज़िल उम्र की ज़ाहिर मआल-ए-ज़िंदगी लाज़िम जुनूँ की सरख़ुशी बेहतर सुरूर-ए-मय-कशी लाज़िम जमाल-ए-ज़ात-ए-वाहिद की कई साँचों में ढल ढल के बुतों तक बात पहुँची है तो उन की बंदगी लाज़िम सुकून-ओ-आफ़ियत के शहर हैं गुमनाम वीराने मगर उन तक पहुँचने के लिए आवारगी लाज़िम शुऊ'र-ए-ज़र्फ़ में आ कर सरापा ज़र्फ़ हूँ 'राही' नज़र तिश्ना है लब तिश्ना तो दिल की तिश्नगी लाज़िम