चश्म-ए-दिल पर कैफ़ है छाया हुआ है तसव्वुर में कोई आया हुआ दिल में है हर वक़्त इक महफ़िल जमी क्या हुआ गर मैं कभी तन्हा हुआ तेरे क़ाबिल तो नहीं है ये मगर एक दिल लाया हूँ मैं टूटा हुआ ज़िक्र फिर बिछड़े चमन का छिड़ गया मुंदमिल था ज़ख़्म-ए-दिल ताज़ा हुआ ऐ चमन से आने वालो कुछ कहो मेरा भी इक आशियाँ था क्या हुआ अब जवानी का करें क्या तज़्किरा एक अफ़्साना सा है भूला हुआ कर रहा है दिल का मातम किस लिए दिल अगर टूटा तिरा अच्छा हुआ उम्र गुज़री और हम देखा किए ज़िंदगी का कारवाँ लूटा हुआ ठोकरें खा खा के दुनिया में 'हबीब' याद आया हर सबक़ भूला हुआ